उलझन ( Ulajhan )
रास्ते अँधेरों से भरे
मै हूँ कहीं खड़ा
मंजिलों को ढूँढता
हुआ लापता
नहीं जानता
जाऊँ कहाँ
मिले कोई मुसाफिर अगर
करूं गुफ्तगू उससे
पूछूं रोशनी का पता
चल तू बता
जाऊँ कहाँ
कुछ खास की चाह है मुझको
रुक नहीं सकता
तो कदम अंधेरे मे भी बढ़ाता हूँ
कुछ ठोकरे भी खाता हूँ
और फिर ज़मी को चूम कर उठ खड़ा हो जाता हूँ
फिर भी खुद से पूछता हूँ
जाऊँ कहाँ
कहीं से आवाज़ आती है की
माना की अंधेरा घना है
अभी बेशक तू कहीं खो गया है
पर तेरा हौसला भी बेपनाह है
मंजिल है, तो कर प्रण अटल
अंधेरे को राख कर इस कदर जल
जाग ॥ और फिर चल
by Anant Kumar
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🤩🤩❤️❤️
ReplyDeleteNice ❤️😘
ReplyDeleteMauj aa gayi bhai
ReplyDeleteमनमोहक❤️❤️
ReplyDeleteपंखो को खोल के रख,
ReplyDeleteया उड़ान बाकी है..
जमीन नहीं मंजिल तेरी,
पूरा आसमा बाकी है..
Keep it up broo
wah wah...Amazing
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